पर नारी की प्रीत फुस् की तपनी-स्वर- ब्रजेश शास्त्री -मंजेश शास्त्री-- छोटे सुपरस्टार परवेस- देवकी शास्त्री
टाइटल नाम = पर नारी की प्रीत फुस् की तपनी
गायक = ब्रजेश शास्त्री
कंपीराईट्स =
लेबल =
रिकॉर्डिंग =
अल्बम =
राइटर = ब्रजेश शास्त्री
प्रॉडक्सर =
डायरेक्टर = ब्रजेश शास्त्री
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पर नारी की प्रीत फुस् की तपनी-स्वर- ब्रजेश शास्त्री -मंजेश शास्त्री-- छोटे सुपरस्टार परवेस- देवकी शास्त्री-लिरिक्स हिंदी
(ब्रजेश शास्त्री)
अरे पर नारी की प्रीत फुस् की तपनी
चाहे धरो मूड़ को काटी होती नाई अपनी
जैसोय् रन्ग कुसंग की चादरी तै सोई रंग परायी त्रिया को
हालै में हंसी के बोले फिर हालै में करीहे धूम तड़ाको
अरे धोबी नांद को बिगाड़े जामे मेल छठे सभी हि कपड़ा
ओसन प्यास बुझती नाही तासे पानी भलो अपने हि घड़ा को
लेकिन
बिल्ली रंग सुभाऊ ना बदले कथा भागवत रोज सुनाईयों
आंक ढाक कब हूं ना होय चन्दन मलिया गिरी के पास् लगइयो
तर्ज राग पशु नाई जाने चाहे भैंसे की आगे बीन बजईयों
कायर कब हूँ ना सूर बने चाहे दुई दुई तलवार गहईयों
मंजेश शास्त्री
अरे पर नारी की प्रीत फुस् की तपनी
चाहे धरो मूड़ को काटी होती नाई जैसे
जैसोय् रन्ग कुसंग की चादरी तै सोई रंग परायी त्रिया को
हालै में हंसी के बोले फिर हालै में करीहे धूम तड़ाको
धोबी नांद को बिगाड़े जामे मेल छठे सभी हि कपड़ा
ओसन प्यास बुझती नाही तासे पानी भलो अपने हि घड़ा को
अउ पती ब्रता अपनों सत्तू नाई छोड़े चाहे काफी कितनो बरसे अंगार
चंचल नैन कब हूँ नाई छुपोहे घूँघट 1.5 हांथ लटकाय
छोटे सुपरस्टार परवेस- शास्त्री
अरे पर नारी की प्रीत फुस् की तपनी
चाहे धरो मूड़ को काटी होती नाई जैसे
हाँ सत्य है
जैसोय् रन्ग कुसंग की चादरी तै सोई रंग परायी धीरिया को
हालै में हंसी के बोले फिर हालै में करीहे धूम तड़ाको
अरे धोबी नांद को बिगाड़े जामे मेल छठे सभी हि कपड़ा
ओसन प्यास बुझती नाही तासे पानी भलो अपने हि घड़ा को
यूपी सुपरस्टार गोल्डी शास्त्री
पर नारी विस की रेल फुस् की तपनी
चाहे धरो मूड़ को काटी होती नाई जैसे
(लड़की समझाने लगी ए बाबा जी )
पर नारी विस की रेल फुस् की तपनी
चाहे धरो मूड़ को काटी होती नाई जैसे
जब
जैसोय् रन्ग कुसंग की चादरी तै सोई रंग परायी त्रिया को
हालै में हंसी के बोले फिर हालै में करीहे धूम तड़ाको
और बोली
अरे धोबी नांद को बिगारे जामे मेल छठे सभी हि कपड़ा
ओसन प्यास बुझती नाही और नीर भलो अपने हि घड़ा को
लेकिन
(कुछ ऐसे लो होते है )
बिल्ली रंग सुभाऊ ना बदले कथा भागवत रोज सुनाईयों
अरे पेड़ के नीचे ऊंट खड़ो जातो पत्ता नोचे गो
अंधे पे भैंसिया कुतवाईयों जो 9 की 11 कुते गो
स्व्रर् - देवकी शास्त्री
पर नारी की प्रीत फुस् की तपनी
चाहे धरो मूड़ को काटी होती नाई जैसे
पर नारी की प्रीत फुस् की तपनी
चाहे धरो मूड़ को काटी होती नाई जैसे
जैसोय् रन्ग कुसंग की चादरी तै सोई रंग परायी त्रिया को
हालै में हंसी के बोले फिर हालै में करीहे धूम तड़ाको
अरे धोबी नांद को बिगाड़े जामे मेल छठे सभी हि कपड़ा
ओसन प्यास बुझती नाही तासे पानी भलो अपने हि घड़ा को
और कुत्ता हाँढ़ मांस नाई छाडे बय राबड़ी खीरी खबाय
जहर शांप को नाई कम हुयी हई हे चाहे भरी भरी ढेला दूध पियाव
ओ पती ब्रता सत्तू नाई छोड़े पापी चाहे कितनो लोभी आयी
चंचल नैन कब हूँ नाई छुपोहे घूँघट 1.5 हांथ लटकाय
2- मारु का गौना - स्वर - ओम प्रकाश भईया


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